When you are an old soul trapped in the 21st century

नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही

नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही । – शहरयार

कमबख्त झूठ कहते हैं वो लोग जो ये कहते हैं कि प्यार तो जी हम अपने उनसे करते हैं। क्या है कि प्यार तो ऐसा होता ही नहीं । ऐसा जो दीवारों में जकड़ा ,पति के शर्ट की बटन टांकता ,खाना पकाता प्यार है न सिसकते हुए कब जिंदगी से flushout हो जाता है ,पता ही नहीं चलता तो अपनी सहूलियतों को प्यार का नाम दे कर बदनाम तो नहीं किया जाना चाहिए न जी ? प्यार तो वो है जो बेमुरौवत हो ,बेसाख़्ता हो और आगे -पीछे की सोच से बेखबर हो । क्या है कि जो ख़बरदार हो तो फिर प्यार कैसा ?प्यार को जीना एक adventure को जीना है। अब आप ये मत समझ बैठना कि हम पोस्ट मॉडर्निस्ट सोसाइटी के इत्रपोश भभूके भरी चमड़ीदार मुहब्बत का जिक्र कर रहे हैं।हम तो ज़िक्र कर रहे हैं मॉडर्निज़्म के पहले ज़माने की मुहब्बत का । ख़ैर मुद्दे की बात कि हम ये भी नहीं कहते की ऐसे प्यार के सहारे जिंदगी चलती है पर जी जिंदगी अगर चलानी ही पड़ जाए तो फिर नामुराद इंसान होने की ज़रूरत ही क्या ? पेड़ पौधे ही भले जड़ , सस्ते और टिकाऊ।

कभी दिल में आये तो ऐसा सोच कर देखिये हां ईमानदारी इसकी पहली शर्त है जो दिल में फ़रेब रख कर उतरे तो फिर उफ़ान वाले दरिया से भी आप सूखे लौट आओगे ।चलते चलते_

जख्मों को रफू करके दिल शाद करें फिर से

ख्वाबों की कोई दुनिया आबाद करें फिर से ।

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