ख़ुशदिल बेवकूफ़

आपने कभी ग़ौर किया है? ये जो समझदारी है न किसी चरस की लत की तरह है जो एक बार पड़ गयी तो ताजिंदगी नहीं छूटती।आप लिपटते चले जाते हो और खो जाते हो ।बाहर से चाहे जितनी आवाजें हों अन्दर कुछ पहुँचता ही नहीं । एक झीनी छन्नी की तरह जिसमें से सब कुछ निचुड़ पड़ता है प्यार ,गुस्सा ,दुःख ठहरता कुछ भी नहीं।

यूँ तो करीने से संवारा गया नाख़ून भी अगर टूट जाये तो दिल तड़प उठता है लेकिन जो चीज भीतर तक सालती है वो शायद किसी की मासूमियत का खो जाना है । बेउम्र -बेवक़्त जैसे किसी फूल का मुरझा जाना है । ऐसा मानो किसी नम गुलाब पर किसी तेज कुल्हाड़ी का चल जाना ।पर इंसान के हालात कभी कभी जिंदगी की कीमत में उसकी मासूमियत उसकी शोखियों को छीन लेते हैं ।फिर क्या करें !जी सवाल तो बहुत हैं पर जवाब नदारद। न तो वक़्त की घिरनी को पीछे घुमाया जा सकता है न बिना कराहे दम साधे जिया जा सकता है । खैर ऐसे में यूँ ही क्यों न मान ले कि चलो न सही अपनी किस्मत में एक खुशदिल बेवकूफ़ होना,पर ऐसा मान लेने का हक़ तो कोई हमसे नहीं छीन सकता । फ़िलहाल –

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है।

4 thoughts on “ख़ुशदिल बेवकूफ़

Leave a reply to lostsoul94blog Cancel reply